क़लम कितना लिखती हो तुम
कलम कितना लिखती हो तुम।
मन में छिपे हुए कितने भावों को।
कागज पर कैसे उकेरती हो तुम ।
क्या तुम कभी थकती नहीं हो।
परिश्रम कितना करती हो तुम।
कलम कितना लिखती हो तुम।
अगर कभी तुम थक जाती।
लेखक की मुश्किल बढ़ जाती।
उसके कुछ प्रयत्न के बाद।
बढ़ता तुम्हारी गति का प्रवाह।
यह सब कैसे कर लेती हो तुम।
कलम कितना लिखती हो तुम।
तुम सब कुछ तो लिख देती हो
पर श्रेय कभी क्यों नहीं लेती हो।
आखिर लेखक के प्रसिद्धि का।
एक माध्यम तुम भी तो हो।
उसके साथ हमेशा रहती हो तुम
कलम कितना लिखती हो तुम।
कागज के पन्ने पर दौड़ती हो तुम हर,
पन्ना तुम्हारी स्याही से सुशोभित होताा
तुम्हारी दौड़ने से एक रचना पूरी होती।
पाठक उसे बहुत ही चाव से पढ़ता।
वाह वाह बस लेखक ही की करता।
मैं एक नई रचना लिखूंगी बहुत यत्न से।
उसका शीर्षक होगा मेरी प्रिय कलम से।
स्नेहलता पाण्डेय'स्नेह'
Sanjay Ni_ra_la
30-Aug-2021 01:13 AM
बहुत ही बेह्तरीन लीक से हटकर लिखी गई कविता
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ऋषभ दिव्येन्द्र
06-Aug-2021 03:15 PM
बहुत ही बेहतरीन व शानदार लिखा है आपने 👌👌
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Renu Singh"Radhe "
06-Aug-2021 02:50 PM
बहुत खूब
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